सूर्य ग्रहण देखने से अंधे हो सकते हैं | Solar Eclipse

सूर्य ग्रहण को देखने से क्या अंधे हो सकते हैं? | Solar Eclipse Solar Retinopathy Explained

क्या सूर्य ग्रहण देखने से अंधे हो सकते हैं? | Solar Eclipse Solar Retinopathy Explained

  सूर्य ग्रहण। कुछ मिनटों के लिए ठहरने वाला एक नजारा। बहुत सारे लोगों के लिए धार्मिक कुछ लोगों के लिए साइंटिफिक, इतनी सारी कहानियां। इसे एक नजारे के पीछे कितनी कहानियां है, कहानियां अच्छी है लेकिन सच्ची नहीं। बात करूं तो इस पसेरी भर के इवेंट के साथ किलो भर मिथ्या होती है और क्विंटल भर का डर।

 सूर्य ग्रहण किस कारण से होता है ? 

 कुछ देर के लिए पृथ्वी और सूरज के बीच चांद आ जाता है जिससे सूरज का आधा हिस्सा दिखाता है कुछ हिस्सा दिखाता है, जब सूर्य ग्रहण होता है तब हमे हमारे घर वाले और पास पड़ोसी भी ये कहते की सूर्य ग्रहण के दौरान सूरज को नहीं देखना चाहिए, यानी 

हमें सूर्य को सीधे क्यों नहीं देखना चाहिए?

  वैसे तो सूर्य ग्रहण के मामले में बहुत सारी बातों से डराया जाता है। लेकिन ये एक बात सच  है और इस सच के पीछे साइंस है।

 असल दिक्कत है सूरज को देखने में चाहे सूर्य ग्रहण हो या ना हो सूरज को डायरेक्टली नहीं देखना चाहिए, क्यों नहीं देखना चाहिए? सूरज तो हमसे 15 हजार करोड़ किलोमीटर दूर है इतनी दूर वो हमारी आंखों क्या नुकसान पहोचा सकता है, इस बात को समझने के लिए आपको दो चीजें पता होनी चाहिए।

  पहेली चीज है मेग्नीफ्लाइंग ग्लास , आपने कई न कई मेग्नीफ्लाइंग ग्लास जरूर देखा होगा। वो ग्लास जिससे छोटी छोटी चीजें बड़ी दिखाती है, खुरापाती बच्चे इस ग्लास से न्यूज पेपर पर आग लगाते हैं पत्तों पर भी।

मेग्नीफ्लाइंग ग्लास से आग कैसे लगती है?

 इस ग्लास से आग कैसे लगती है, आग लगती है सूरज की रोशनी से. मेग्नीफ्लाइंग ग्लास दरअसल एक लेंस होता है, ये लेंस सूरज से आने वाली किरणों को एक जगह पर फोकस कर देता है. नॉर्मली किसी कागज पर सूरज की किरणे गिर ने से आग नहीं लगती क्युकी वो किरने पूरे कागज पर फैलती है। लेकिन एक पूरानी कहावत है कि एकता में शक्ति होती है।

 जब वही सूरज की किरने लेंस से गुजर कर एक जगह इकढ्ढी हो जाती है तो वहा आग लगाने लायक गरमी पैदा हो जाती है और कागज जलने लगा। 

 दूसरी चीज जो आपको पता होनी चाहिए, वो है आंख का डाईग्राम, आंख के लेंस और डायग्राम की बात करे तो हमारी आंख में रोशनी लेंस से होकर जाती है। अपनी आंख का जो लेंस होता है ना वो मेग्नीफ्लाइंग लेंस से चार गुना पावरफुल होता हैं। ये वही मेग्नीफ्लाइंग ग्लास वाला फेल हो जाता है, और इस खेल में जलने वाला कागज होता है रेटीना।

 रेटीना क्या होता है?

रेटीना होता है थिएटर का पर्दा थिएटर प्रोजेक्टर से लाइट आती है और एक पर्दे पर फिल्म चलती है किसी तरह अपने आप भी एक थिएटर है। यहां से जो रोशनी होकर जाती है वो रेटिना पर पूरी तस्वीर बनाती है। हमारा दिमाग फाइनल तस्वीर रेटीना से ही लेता है। जानने लायक ये दो ही बातें थी, मेग्नीफ्लाइंग ग्लास और आंखका डायग्राम। 

 अब सोचने और सबक लेनी वाली बात है। सबक ये की हम डायरेक्ट सूरज को देखेंगे तो हमारी आंखों का लेंस बहुत सारी रोशनी को रेटिना पर फोकस कर देगा। ये रोशनी रेटीना को डेमेज कर सकती है। इस लिए बिना पलकें झपकाए डायरेक्ट सूरत की ओर देखना बहादुरी नहीं मूर्खता है। इतनी बात तो समझ में आती है की डायरेक्ट सूरज को देखना डेंजरस है।

 फिर ग्रहण वाले सूरज के बारे इतना क्या स्पेशल है, इसका इतना हल्ला क्यों होता है हमे अलग से ये क्यों चेताया जाता है की सूर्य ग्रहण वाले दिन सूरज को नहीं देखना चाहिए। सबसे बड़ा कारण है, चूल। जी हा लोगो को ग्रहण वाला सूरज देखने की चूल मचती है , किसी भी नॉर्मल दिन सायद ही सूरज देखे या कोई देखे तो भी आंखे चकाचौंध हो जाए।

 ग्रहण वाला सूरज देखने का मोका कम मिलता है और इंसान के अंदर रेअर चीजों को देखने का अलग ही मोटिवेशन होता है। अगर चेताया ना जाए तो इस टाइम पर लोग सूरज को देख देखकर आंखें खराब कर लेंगे।

 ग्रहण वाले सूरज के बारे में एक बात और। हमारी आंखें ग्रहण वाले सूरज को अलग तरीके से जज कर ती है , आपने आंख वाली पुतली के बारे में सुना होगा । अंकH की पुतली लेंस से ठीक पहले होती है जो हमे काली काली दिखती है और ये फैलती सिकुड़ती है। 

 अगर आंखों में ज्यादा रोशनी अंदर जाती है। तो यह पुतली सिकुड़ जाती है। ताकि कम रोशनी अंदर जाए और रेटिना डैमेज ना हो। ग्रहण सूरज से नॉर्मल सूरज के मुकाबले कम रोशनी आती है। हमारी पुतली उतनी नहीं सिकुड़ती जितनी उन्ने सिकुड़ना चाहिए, हमारी पलकें भी कम जपकती है। भाई देखना होता है ग्रहण वाला सूरज। लेकिन ग्रहण वाला सूरज भी रेटीना के लिए डेंजरस होता है पर हमारी पुतलियां इस डेंजर से हिसाब से एडजस्ट नहीं होती। इसलिए सूरज से आने वाली बहुत सारी रोशनी रेटीना से अंदर जाकर उसे डेमेज कर देती है।

 सूरज को देखने से ज्यादातर लोग अंधे नही होते उनका सेंट्रल विजन खराब होता है। सेंट्रल विजन यानी केंद्रीय दृष्टि। हमारी दृष्टि का सबसे अहम हिस्सा जिसके दम पर हम फोकस कर पाते हैं, पढ़ पाते हैं, ड्राइव कर पाते हैं। साफ-साफ लोगों के चेहरे देख पाते, वो वाला हिस्सा डेमेज हो जाता है। बहोत केसेस में ऐसा होता है की 15–20 दिन बाद यह विजन ठीक हो जाता है। लेकिन जिनका ठीक नहीं होता। उनका कभी ठीक नहीं होता। कई बार डेमेज का पता बाद में चलता है।

 दरअसल सूरज की तरफ देखने ने हमारी रेटीना की कोसिकाए डेमेज हो जाती है, उसके सेल्स और ऐसा जरूरी नहीं है कोसिकाएं तुरंत ही डेमेज हो। मान लीजिए की किसीने दिन में ग्रहण देखाहो, हो सकता है डेमेज होने के कुछ देर बाद  तक उसकी कोसिकाए काम करती रहे। लेकिन जब वो रात में सोने जाए तो ये कोशिकाएं अपना काम त्याग दे, कई कोशिकाएं रातों रात मर भी जाति है, और अगले दिन वो व्यक्ति आईने मे वो अपना चहेरा ना देख पाए। सूर्य ग्रहण से आपको नुकसान हो सकता है।

 इसलिए ज्यादा होशियारी में ना रहिएगा कि हमने तो ग्रहण देख लीआ और हमें कुछ हुआ ही नहीं। 

सूर्य ग्रहण को कैसे देखें

 दोस्तो ग्रहण देखने के तरीके होते है , उसके लिए स्पेशल चस्मे आते है।

 इन चस्मो से रोशनी डायरेक्ट आपकी आंखों में नहीं पड़ती और आपके सुरक्षित रहती है।

 लोगो ने तो और देसी जुगाड निकाल के रखे इंटरनेट पर आपको आसानी से मिल जाएंगे। जुगाड़ू बनिए, समझदार बनिए

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